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February 24, 2018 at 9:22 am #141503
मेरठ
उत्तर प्रदेश के मेरठ जिले की शिक्षिका प्रियंका सिंह को स्कूल में छात्रों को कलर कोडिंग वाली जटिल वैज्ञानिक अवधारणाओं को समझाते वक्त कई मुश्किलों का सामना करना पड़ता था। उन्हें ब्लैक बोर्ड की जगह वाइट बोर्ड की जरूरत थी। उन्होंने स्थानीय लोगों से मदद मांगी, लेकिन मदद नहीं मिली।तब उन्हें किसी ने सलाह दी कि वह भारतीय शिक्षाविदों सेऑनलाइन फंड + की मदद लें। उन्होंने वाइट बोर्ड के लिए ऑनलाइन कैंपेन शुरू किया। उन्हें आश्चर्य हुआ कि उनके पास मात्र एक हफ्ते में पूरा फंड जुट गया। प्रियंका ने बताया कि अब उनके पास वाइट बोर्ड है। इतना ही नहीं उन्होंने अब प्रोजेक्टर भी खरीद लिया है।
आईआईएम छात्रों से भी मदद
दिलचस्प बात यह है कि जरूरतमंद शिक्षक ऑनलाइन फंडिंग के लिए Mydilse.org का प्रयोग कर रहे हैं। इसमें आईआईएम के छात्र उनकी मदद करते हैं। इसी तरह की अन्य वेबसाइट्स भी स्कूलों की मदद कर रही हैं।एक शिक्षक जिन्हें उनके स्कूल के लिए मदद चाहिए होती है वह वेबसाइट + में रजिस्ट्रेशन करते हैं। यह रजिस्ट्रेशन फ्री है। फंड मांगने के लिए तस्वीरें और विवरण लिखा जाता है। उसके बाद आईआईएम के इंटर्न, शिक्षकों की पहचान के लिए उनके पहचानपत्र की जांच करते हैं। इस प्रक्रिया के बाद ऑनलाइन कैंपेन शुरू किया जाता है।
फंडिंग का यह तरीका बेहद लोकप्रिय
आंध्र के एमपीपीएस रामचंद्रपुरम सरकारी सूक्ल को प्रोजेक्टर के लिए 4,990 रुपये जन-सहयोग से मिले। जब पर्याप्त धन एकत्र हो गया तो ऑनलाइन प्रोजेक्टर खरीदा गया और मदद मांगने वाले शिक्षक के स्कूल भेज दिया गया।देश के शिक्षा क्षेत्र में जनसहयोग से फंड जुटाना खूब लोकप्रिय हो रहा है। पिछले साल एजुधर्मा नाम की पहली क्राउडफंडिंग की वेबसाइट शुरू की गई। दान देने वाले को भी वेबसाइट में छात्रों के बारे में बताया जाता है। उन्हें इस बात से संतुष्ट किया जाता है कि उनका दान सही जगह जा रहा है।
स्कूलों को गोद लेने पर जोर
Mydilse.org के फाउंडर नवीन पल्लाइल ने बताया कि वह हैदराबाद के छोटे से गांव के रहने वाले हैं। उनके माता-पिता प्राइवेट स्कूल की फीस नहीं दे सकते थे, इसलिए उनका प्रवेश गांव के ही सरकारी स्कूल में कराया गया।उन्होंने बताया कि वह देश के सरकारी स्कूलों की हालत समझ सकते हैं इसलिए वह इस प्लैटफॉर्म की मदद से स्कूलों की दुर्दशा सुधारने में लगे हैं। पहले वह स्कूलों को गोद लेते थे। स्कूलों की मरम्मत करवाते थे। उन्हें सुविधाएं मुहैया कराते थे, लेकिन बाद में उन्हें यह अहसास हुआ कि इस काम में उनका बहुत समय जाता था। उनके अकेले दान से कुछ ही छात्रों को ही लाभ मिल पाता। तब उन्हें ऑनलाइन प्लैटफॉर्म अपनाया।
नवीन एक अमेरिकन सॉफ्टवेयर कंपनी + के हैदराबाद में निदेशक हैं। वह आईआईएम इंदौर और आईआईएम कैशीपुर के प्लेसमेंट सेल के संपर्क में रहते हैं। यहां से उन्हें उनकी वेबसाइट के लिए इंटर्न मिलते हैं।
Source: https://navbharattimes.indiatimes.com/state/uttar-pradesh/meerut/online-crowdfunding-is-changing-classrooms-of-ignored-govt-schools/articleshow/63022990.cms
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